Description
“संस्कृत” भारत की आत्मा है। जैसे आत्मा के बिना कोई भी व्यक्ति जीवित नहीं रह सकता, वैसे ही संस्कृत के बिना भारतीय संस्कृति की कल्पना नहीं की जा सकती।
संस्कृत के प्रचार-प्रसार के लिए भारत में अनेक लोग, अनेक संस्थाएं और अनेक योजनाएं कार्य कर रही हैं। प्राचीन काल में भारतवासी भाषा, ज्ञान-विज्ञान, आयुर्वेद, उपासना, इतिहास, दर्शन आदि विशाल वैदिक विषयों को संस्कृत भाषा में ही सीखते थे। यही कारण है कि भारत ने विश्व में गौरव और विशेष स्थान प्राप्त किया।
आज जब हम वेद, उपनिषद, गीता, रामायण, महाभारत, आयुर्वेद, फलित ज्योतिष, आयुर्विज्ञान, औषधि विज्ञान जैसे विषयों की बात करते हैं, तब पाते हैं कि ये सभी संस्कृत भाषा में ही रचे गए हैं। संस्कृत भाषा के अध्ययन से इनका मूल ज्ञान प्राप्त होता है। अतः संस्कृत भाषा का अध्ययन आवश्यक है।
विद्यालयों में संस्कृत पढ़ाई जाती है, लेकिन उसमें व्याकरण, संधि, समास, प्रत्यय, शब्दरूप, धातुरूप आदि को सूत्रों सहित पढ़ाया जाता है। यदि इसे अभ्यास के साथ पढ़ाया जाए तो विद्यार्थियों की सोचने की क्षमता भी बढ़ेगी और संस्कृत के प्रति प्रेम भी उत्पन्न होगा।
आज यह चिंता का विषय है कि वैदिक ज्ञान धीरे-धीरे लुप्त होता जा रहा है। कुछ लेखक, कवि, पत्रकार, चिंतक और वक्ता अपने गौरवशाली अतीत की चर्चा करते हैं, लेकिन उसके लिए कर्म के रूप में कोई प्रयास नहीं करते।
सौभाग्य से अब समय बदल रहा है। लोग संस्कृत भाषा को पढ़ने-लिखने की दिशा में सोचने लगे हैं। जब तक संस्कृत का अध्ययन और शिक्षण श्रद्धा से नहीं होगा, तब तक किसी क्षेत्र में पूर्ण सफलता नहीं मिल सकती।
भारतीय शासन और शिक्षा व्यवस्था को इस ओर विशेष ध्यान देना चाहिए ताकि यह कार्य सार्थक सिद्ध हो।
भारत सरकार तथा केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (CBSE) समय-समय पर संस्कृत भाषा के अध्ययन-अध्यापन से संबंधित दिशानिर्देश जारी करता है। पहले यह भाषा कक्षा 4 से शुरू कराई जाती थी। इस समय संस्कृत भाषा का स्तर भी सरल और सहज बनाया गया है।
इसी उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए यह पुस्तक तैयार की गई है। यह पुस्तक विद्यार्थियों के लिए उपयोगी, सरल, सुबोध तथा रुचिकर हो, यही प्रयास है।
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